जैसा की आपको पता है इन दिनों adipurush फिल्म जो की ६०० करोड़ की लागत से बानी है की परेशानियाँ ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। लोगो का मानना है की फिल्म के निर्माता ने क्रिएटिविटी लिबर्टी के नाम पर धर्म का अपमान किया है। पर ऐसा सिर्फ adipurush के साथ नहीं है, आपको बता दें की ऐसा रामानंद सागर की रामायण के साथ भी हो चुका है पर उसका कारण कुछ और था। चलिए जानते हैं की रामायण को किन विवादों का सामना करना पड़ा था।
रामानंद सागर की रामायण आदिपुरुष की तरह सिनेमा घरों में नहीं लगी थी पर टेलीविज़न पर इसने खूब तारीफें बटोरी थीं। उस समय लोग अपने सारे कामों को छोड़ कर रामायण के नए एपिसोड्स का आने का इन्तिज़ार किया करते थे। हालाँकि रामायण में भी इनके निर्माता ने क्रिएटिविटी लिबर्टी के नाम पर काफी बदलाब किये थे। और इसी के चलते रामानंद सागर को इसके रिलीज़ से लेकर अंत तक कई विवादों से गुजरना पड़ा था।
पर उससे पहले जानते हैं की प्रेम सागर ने आदिपुरुष को लेकर क्या कहा,
प्रेम सागर आदिपुरुष के इन विवादों पर अपनी प्रतिकिर्या देते हुए कहते हैं, कलम में बहुत बड़ी तागत होती है, इससे लिखने वाले पर बहुत सारी जिम्मेदारियां होती हैं। और जब इस कलम से कुछ धर्म पर लिखा जाता है तो जिम्मेदारी और ज़्यादा बढ़ जाती है। इसलिए आपको ये पूर्ण रूप से ध्यान देना होता है की आप लोगों की भावना को ध्यान में रखते हुए अपनी लेखन कला को प्रदर्शित करें। और अगर आप ये मानते है की आदिपुरुष रामायण से सिर्फ प्रेरित है तो उसके लिए आपको इसे बाल्मीकि जी रामायण बताना बिलकुल गलत है। आप इसे और फिल्मो की तरह बना सकते थे, बशर्ते इसमें रामायण के कोई पात्र ना हों।
आगे कहते हैं,
ऐसी कौनसी रामायण है जिसमें गुरुकुल का जिक्र है?
प्रेम सागर आगे इस बात पर अपनी राय रखते हुए बताते हैं, भरत के राज तिलक की दौरान श्री राम वनवास के लिए निकलते हैं। तब भरत कहते हैं की एक राजा बनने के लिए आपको न केवल उत्तराधिकारी होना जरुरी है बल्कि प्रजा के बीच आपका वोट होना आवश्यक है। इसके आलावा इसमें गुरु की भी हाँ होनी चाहिए। इस दृश्य में, रामानंद सागर मानते थे की ये एक तरह से वंशवाद है, जो लोगों के बीच ना आये तो ठीक रहेगा। इस तरह से रामानंद सागर ने भी रामायण में क्रिएटिविटी लिबर्टी के नाम पर इस दृश्य को दिखाया था।
रामानंद सागर की रामायण का दूसरा विवादित दृश्य,
जैसा की आप लो जानते हैं, श्री राम विष्णु के अवतार हैं, उन्हें किसी भी तरह की शिक्षा की आवश्यकता नहीं थी। और राम का गुरुकुल में जाना किसी भी रामायण में नहीं है। पर रामानंद सागर ने एक सीक्वेंस इसके अलग से रखा था, जिसमें श्री राम गुरुकुल में अपनी शिक्षा लेते हैं। रामानंद सागर का ऐसा मानना था की गुरुकुल की परम्परा धीरे धीरे समाप्त हो रही है। और अगर इस तरह से लोगों के बीच श्री राम का गुरुकुल जाना दिखाया जाए तो लोगों के बीच गुरुकुल की महत्वता बढ़ेगी। हालाँकि इस तरह का सीक्वेंस के लिए रामानंद सागर ने उस समय के धर्म ज्ञाताओं से इस विषय में चर्चा की थी, जैसे की शिवसेन भारती, धर्मवीर भारती, JNU के विष्णु मल्होत्रा, इत्यादि।
इन सभी लोगों का मत था की अगर श्री राम गुरुकुल जाते हैं, तो वह क्या बोलेंगे और उनके गुरु उनको क्या जबाब देंगे? तो इस तरह से देखा जाए की श्री राम का गुरुकुल में विद्यार्थी होना एक तरह से रामानंद सागर का क्रिएटिव लिबर्टी लेना कहा जा सकता है।
अब आती है प्रधानमंत्री ऑफिस से कॉल आने की बात,
प्रेम सागर के अनुसार, रामानंद सागर ने रामराज तक ही रामायण को पूर्ण कर किया था, क्यूंकि तुलसीदास रचित रामायण में सिर्फ रामराज तक ही वर्णन है । वहीँ जब लव-कुश के हिस्से की बात आती है, तो उसका वर्णन ऋषि बाल्मीकि द्वारा किया गया है। तुलसीदास जी के अनुसार श्री राम मर्यादा पुरषोतम हैं, वह कभी भी सीता को वनवास नहीं भेज सकते। और वो कैसे सीता को लक्ष्मण को बोलकर कपट से जंगल में छोड़ सकते हैं, ये जानते हुए भी की सीता गर्भवती है। और यही रामानंद सागर का भी मानना था। इसलिए जब गवर्नमेंट द्वारा रामायण को पास किया था तब रामानंद सागर ने पहले ही ये स्पष्ट कर दिया था की रामायण को सिर्फ श्री राम के रामराज तक ही सीमित रखा जाएगा।
हालाँकि जब रामायण पूर्ण हुई, तो पूरे देश में आग लग गयी थी। और लोगों का मत था की कैसे बाल्मीकि वाले हिस्से को नहीं दिखाया। लोग चाहते थे की लव-कुश हिस्सा भी दिखाया जाए। और इसी के चलते है प्रधानमत्री ऑफिस भी कॉल आया था, जिन्होंने भी इस हिस्से को दिखाए जाने पर जोर दिया। इस तरह से लव-कुश संस्करण को भी प्रसारित किया गया।